अध्याय 3: राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के कार्य एवं शक्तियां
आयोग के कार्य आयोग निम्न कृतियों का निष्पादन करेगा अर्थात :-
(क) स्वप्रेरणा से या किसी पीड़ित या उसकी ओर से किसी व्यक्ति द्वारा उसे प्रस्तुत याचिका पर
(1) मानव अधिकारों के उल्लंघन या उनके उपशमन की; या
(2) किसी लोक सेवक द्वारा उस उल्लंघन को रोकने में उपेक्षा की शिकायत की जांच करेगा।
(ख) किसी न्यायालय के समक्ष लंबित मानवाधिकारों के उल्लंघन के किसी अभिकथन बाली किसी कार्रवाई में उस न्यायालय की अनुमति से हस्तक्षेप करेगा।
(ग) राज्य सरकार को सूचना देने के अध्याधीन, राज्य सरकार की नियंत्रण अधीन किसी जेल या किसी अन्य संस्था का जहां पर उपचा,र सुधार या संरक्षण के प्रयोजनार्थ व्यक्तियों के विरुद्ध किया जाता है या रखा जाता है निवास करने वालों की जीवन की दशाओं का अध्ययन करने एवं उस पर सिफारिशें करने के लिए निरीक्षण करेगा।
(घ) मानव अधिकारों के संरक्षण के लिए संविधान या ततसमय प्रवृत्य किसी कानून द्वारा या उसके अधीन प्रभावित प्राविधित सुरक्षाओ का पुनर्विलोकन करेगा तथा उनके प्रभावी क्रियान्वयन के लिए सिफारिश करेगा।
(ड) उन कारकों का, जिसमें अग्रवाद के कृत्य भी है, मानव अधिकारों के उपयोग में बाधा डालते हैं, पुनर्विलोकन करेगा एवं उपयुक्त उपचारात्मक उपायों की सिफारिश करेगा।
(च) मानव अधिकारों पर संधियों एवं अंतरराष्ट्रीय अध्ययन करेगा तथा उनके प्रभावी क्रियान्वयन के लिए सिफारिश करेगा।
(छ) मानव अधिकारों के क्षेत्र में अनुसंधान एवं उसे प्रोन्नत करेगा।
(ज़) समाज के विभिन्न खंडों में मानवाधिकार साक्षरता का प्रचार करेगा तथा प्रशासको, साधनों सेमीनारों एवं अन्य उपलब्ध साधनों के माध्यम से अधिकारों के संरक्षण के लिए उपलब्ध सुरक्षाओ के प्रति जागरूकता को विकसित करेगा।
(झ) मानवाअधिकारों के क्षेत्र में कार्य करने वाले गैर सरकारी संगठनों एवं संस्थाओं के प्रश्नों को प्रोत्साहित करेगा।
(ज्) ऐसे अन्य कार्य करेगा जिन्हे यह मानव अधिकारों के संवर्धन के लिए आवश्यक समझेगा।
धारा 13 :जांच से संबंधित राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की शक्तियां:-
(1) आयोग, इस अधिनियम के अधीन शिकायतों की जांच करते समय सिविल प्रक्रिया संहिता-1960 के अंतर्गत बाद का तथा विशेष रूप से निम्न मामलों के संबंध में विचारण करते हुए सिविल न्यायालयों की समस्त शक्तियां रखेगा:-
(क) साक्षियों को बुलाना तथा उनकी उपस्थिति प्रवर्तित करना एवं शपथ पर उसकी परीक्षा करना।
(ख) किसी दस्तावेज को खोलना और प्रस्तुत करना।
(ग) हलफनामा पर साक्ष्य प्राप्त करना।
(घ) किसी न्यायालय या कार्यालय से किसी लोक अभिलेख या उसकी प्रीति के लिए अभियाचना करना।
(ड) साक्षियों या दस्तावेजों की परीक्षा के लिए कमीशन जारी करना।
(च) अन्य कोई मामला जो पेश किया जाएगा।
(2) आयोग को किसी व्यक्ति से विशेष अधिकार के अध्यधीन रहते हुए जैसे उस व्यक्ति द्वारा ततसमय प्रवृत्य किसी विधि के तहत क्लेम किया जाएगा, ऐसे बिंदुओ या मामलों पर जो आयोग की राय में जांच के विषय के लिए उपयोग होंगे, या उससे सुसंगत होंगे, सूचना प्रस्तुत करने के लिए कहने की शक्ति प्राप्त होगी तथा इस प्रकार से उपेक्षा किए गए व्यक्तियों को भारतीय दंड संहिता की धारा- 176 धारा-177 के अंतर्गत ऐसी सूचना देने के लिए बाध्य हुआ समझा जाएगा।
(3) आयोग या कोई अन्य अधिकारियों अन्य अधिकारी जो राजपत्रित अधिकारी के नीचे केरैक का नहीं होगा, और आयोग द्वारा इस संबंध में विशेष रुप से प्राधिकृत किया गया है, किसी ऐसे भवन या स्थान में प्रवेश करेगा जहां पर आयोग कारणों से यह विश्वास करता है कि जांच के विषय से संबंधित कोई दस्तावेज पाया जा सकेगा, तथा दंड प्रक्रिया संहिता 1973 की धारा 100 कि जहां तक वह प्रयोज्ञ्य है, उपबंधों के अध्यधीन रहते हुए ऐसे दस्तावेज को अधिग्रहित कर सकेगा या उससे उद्धरण प्रतिलिपियाँ ले सकेगा।
(4) आयोग को सिविल न्यायालय होने के रूप में समझा जाएगा, तथा जब कोई अपराध जो भारतीय दंड संहिता की धारा 175, 178, 179, 180 या धारा 228 में वर्णित है आयोग के मत में या उसकी उपस्थिति में किया जाता है तो अपराध का कट गठन करने वाले तथ्यों को तथा दंड प्रक्रिया संहिता 1973 में यथा उपबंधित अभियुक्त के बयानों को लेख्ब्दध्य करने के बाद, उस मामले को ,उस पर विचारण करने का क्षेत्रअधिकार रखने वाले मजिस्ट्रेट को अग्रेषित करेगा तथा मजिस्ट्रेट जिसे वह मामला अग्रेषित किया जाएगा उस अभियुक्त के विरुद्ध शिकायत को सुनने की कार्रवाई उसी तरह करेगा जैसे मानो वह मामला उसे दंड प्रक्रिया संहिता 1973 की धारा 346 के अंतर्गत अग्रेषित किया गया है।
(5) आयोग के समक्ष प्रत्येक कार्रवाई को धारा 193 भाग 228 के अंतर्गत तथा भारतीय दंड संहिता की धारा 196 की प्रयोजनार्थ, न्यायिक कार्रवाई के रूप में समझा जाएगा तथा आयोग को दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 1973 की धारा 195 और अध्याय 26 के लिए होना समझा जाएगा।
धारा 14 अनुसंधान:-
(1) आयोग जांच से संबंधित कोई अन्वेषण करने के प्रयोजन के लिए भारत सरकार या राज्य सरकार के किसी अधिकारी या अन्वेषण एजेंसी की सेवाओं का उपयोग भारत सरकार और राज्य सरकार ऐसा स्थिति की सहमति से करेगा।
(2) जांच से संबंधित किसी मामले में अन्वेषण करने के प्रयोजनार्थ कोई भी अधिकारी या एजेंसी, जिसकी सेवाओं का उपयोग उपधारा (1) के अधीन किया गया है आयोग के निर्देश या नियंत्रण के अध्यधीन रहते हुए:-
(क) किसी व्यक्ति को समन कर सकेगी तथा उसकी उपस्थिति को प्रवर्तित कर सकेगी एवं उसकी परीक्षा कर सकेगी।
(ख) किसी दस्तावेज की खोज करने या प्रस्तुत करने की उपेक्षा कर सकेगी।
(ग) किसी कार्यालय से किसी लोग अभिलेख या उसकी प्रीति के लिए अधियाचना कर सकेगी।
(3) धारा 15 केउपबंध किसी अधिकारी या एजेंसी के जिसकी सेवाओं का उपधारा (1) के आधीन उपयोग किया गया है, समक्ष किसी व्यक्ति द्वारा किए गए किसी बयान के संबंध में उसी तरह लागू होंगे जैसे कि बे आयोग के समक्ष साक्ष्य देने के दौरान किसी व्यक्ति द्वारा दिए गए बयानों के संबंध में लागू होते हैं।
(4) अधिकारी एजेंसी जिसकी सेवाओं का उपयोग उपधारा (1) के अधीन किया गया है, जांच से संबंधित किसी मामले में अन्वेषण करेगा तथा उस पर प्रतिवेदन आयोग को ऐसी अवधि के भीतर प्रस्तुत करेगा जो इस संबंध में आयोग द्वारा विहित की जाएगी।
(5) आयोग अभीकथित तथ्यों एवं उपधारा (4) के अधीन उसे प्रस्तुत किए गए प्रतिवेदनों में निकाले गए परिणामों, यदि कोई हो, कि सत्यता के बारे में अपना समाधान करेगा तथा इस प्रयोजन के लिए आयोग ऐसी जांच (जिसमें उस व्यक्ति या व्यक्तियों की परीक्षा भी शामिल है जिन्होंने अन्वेषण किया या उसमें सहायता की) करेगा जो वह उचित समझेगा।
धारा 15 आयोग को व्यक्तियों द्वारा किया गया अभिकथन:
आयोग के समक्ष साक्ष्य देने के दौरान व्यक्ति द्वारा किया गया कोई अभिकथन, उस अभिकथन द्वारा झूठी साक्षी देने के लिए अभियोग चलाने के सिवाय किसी सिविल या आपराधिक कार्रवाई के अध्यधीन होगा या उसके विरुद्ध उपायों में नहीं किया जाएगा :-
परंतु यह कि वह अभिकथन.
(क) उस प्रश्न के उत्तर में किया गया हो जिसका उत्तर देने के लिए आयोग द्वारा उससे अपेक्षा की गई हो, या
(ख) जांच के विषय से सुसंगत हो,
धारा 16: प्रतिकूल प्रभाव डालने की संभावना पर व्यक्तियों की सुनवाई:- यदि किसी जांच के किसी स्तर पर आयोग
(क) किसी व्यक्ति के आचरण के बारे में जांच करना आवश्यक समझता हो ,या
(ख) यह राय रखता हो कि किसी व्यक्ति की प्रतिष्ठा पर उस जांच से प्रतिकूल प्रभाव पड़ने की संभावना है,
तो वह व्यक्ति को जांच में सुने जाने का तथा अपने बचाव में साक्ष्य प्रस्तुत करने का अवसर प्रदान करेगा।
परंतु यह कि धारा की कोई बात, जहां किसी साक्षी किसाख पर आक्षेप लगाया गया है लागू नहीं होगी।
अध्याय 4: शिकायतों की जांच प्रक्रिया राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग में:
धारा 17: शिकायतों की जांच :-
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग केवल अंग है की शिकायतों की जांच करते समय:-
(1) भारत सरकार या किसी राज्य सरकार या उसके अधीनस्थ किसी अन्य प्राधिकारी या संगठन की सूचना या प्रतिवेदन ऐसे समय के भीतर मंगवाएगा जो उसके द्वारा विनिर्दिष्ट किया जाएगा
परंतु यह की
(क) यदि वह सूचना या प्रतिवेदन आयोग द्वारा निर्धारित समय के भीतर प्राप्त नहीं होता है तो वह स्वयं शिकायत की जांच करने के लिए कार्यवाही करेगा।
(ख) यदि सूचना या प्रतिवेदन के प्राप्त होने पर आयोग का इससे समाधान हो जाता है कि या तो आगे और जांच करना अपेक्षित नहीं है या संबंधित सरकार या प्राधिकारी द्वारा अपेक्षित कार्रवाई नहीं करेगा तथा तदनुसार शिकायतकर्ता को सूचना देना देगा
(2) खंड (1) में अंतर्विष्ट किसी बात पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, यदि शिकायत की प्रकृति को ध्यान में रखते हुए आवश्यक समझे तो जांच प्रारंभ कर सकेगा।
धारा 18 जांच के बाद किए गए कदम:-
आयोग इस अधिनियम के अधीन आयोजित जांच के पूरा होने पर निम्नलिखित में से कोई कदम उठा सकता है अर्थात-
(1) जहां जांच मारा अधिकारों का उल्लंघन करने को या किसी लोक सेवक द्वारा मानवाधिकारों के उल्लंघन के निवारण में उपेक्षा को प्रकट करती है तो वह सरकार या प्राधिकारी को अभियोजन की कार्यवाही या ऐसी अन्य कार्यवाही प्रारंभ करने की सिफारिश करेगा जिससे आयुक्त संबंधित व्यक्ति के दूध उचित समझेगा।
(2) उच्चतम न्यायालय या उच्च न्यायालय में ऐसे निर्देश आदेश या रिट के लिए जाएगा जो वह न्यायालय आवश्यक समझेगा।
(3) पीड़ित के परिवार के सदस्य को ऐसी तुरंत राहत जिसे आयोग आवश्यक समझेगा, प्रदान करने की संबंधित सरकार या प्राधिकारी की सिफारिश करेगा।
(4) खंड (5) के उपबँधो के अध्याधीन जांच प्रतिवेदन की एक प्रतियाची ( पिटीशन) या उसके प्रतिनिधि को दे देगा।
(5) आयोग अपने जांच प्रतिवेदन की एक प्रति अपनी सिफारिशों के साथ संबंधित सरकार या प्राधिकारी को भेजेगा तथा संबंधित सरकार या प्राधिकारी, 1 माह की अवधि या ऐसे और समय के भीतर जिसे आयोग स्वीकृत करेगा, उस प्रतिवेदन पर अपने अभिमत, उस पर की गई या कि जाने हेतु प्रस्तावित कार्यवाही के साथ आयोग को अग्रेसित करेगा।
(6) आयोग अपनी जांच प्रतिवेदन को संबंधित सरकार या प्राधिकारी के अभिमतों, यदि कोई हो, तथा आयोग की सिफारिशों पर संबंधित सरकार या प्राधिकारी द्वारा दी गई या की जाने के लिए प्रस्तावित कार्रवाई को प्रकाशित करेगा।
धारा 19: सशस्त्र बलों के संबंध में प्रक्रिया:-
(1) इस अधिनियम में अंतर्विष्ट किसी बात के होते हुए भी सशस्त्र बल के सदस्यों द्वारा मानव अधिकारों के उल्लंघन की शिकायतों को निपटाने समय आयोग निम्नलिखित प्रक्रिया अपनाएं अर्थात
(क) वह या तो स्वप्रेरणा से या प्रार्थना (पिटीशन) के प्राप्त होने पर भारत सरकार से एक प्रतिवेदन मंगवाएगा।
(ख) प्रतिवेदन प्राप्त होने के बाद, वह या तो शिकायत पर कार्रवाई नहीं करेगा, या यथास्थिति उस सरकार को अपनी सिफारिश करेगा।
(2) भारत सरकार उन सिफारिशों पर की गई सिफारिशों पर की गई कार्यवाही की सूचना आयोग को 3 माह यह से और समय के भीतर देगा जो आयुक्त स्वीकृत करेगा।
(3) आयोग अपने प्रतिवेदन को भारत सरकार को की गई अपनी सिफारिशों एवं उन सिफारिशों पर उस सरकार द्वारा की गई कार्रवाई के साथ प्रकाशित करेगा।
(4) आयोग याची (पिटीशनर) या उसके प्रतिनिधि को उपधारा (3) के अधीन प्रकाशित प्रतिवेदन की एक प्रति देगा।
धारा 20: आयुग के वार्षिक एवं विशेष प्रतिवेदन:
(1) आयोग भारत सरकार एवं संबंधित राज्य सरकार को एक बार्षिक प्रतिवेदन प्रस्तुत करेगा तथा किसी भी समय किसी भी ऐसे मामले पर जो उसकी राह में, इतनी आवश्यकता एवं महत्व का है की वार्षिक प्रतिवेदन प्रस्तुत किए जाने तक उसे आस्थगित नहीं रखा जाना चाहिए, विशेष प्रतिवेदन प्रस्तुत करेगा।
(2) भारत सरकार या राज्य सरकार, यथास्थिति आयोग के वार्षिक एवं विशेष प्रतिवेदनों के आयोग की सिफारिशों पर की गई या की जाने के लिए प्रस्तावित कार्रवाई के ज्ञापन एवं उन सिफारिशों को स्वीकार नहीं करने के कारणों, यदि कोई हो, के साथ संसद के प्रत्येक के सदन या राज्य विधानसभा के समक्ष यथास्थिति प्रस्तुत करायेगी।
और आगे जाने अगले लेख मे
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग संपूर्ण हुआ (National Human Rights Commission completed)
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