अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम - 1989 भाग तीन (Scheduled Castes and Scheduled Tribes Prevention of Atrocities Act - 1989 Part Three)
धारा 3.2: अत्याचारों के अपराध के लिए दंड :
धारा- (3.2 ) अत्याचारों के अपराध के लिए दंड :
कोई भी व्यक्ति जो अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति का सदस्य नहीं है
(i):मिथ्या साक्ष्य देगा या गढ़ेगा जिससे उसका आशय अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के किसी सदस्य को किसी ऐसे अपराध के लिए जो ततसमय प्रवृत विधि द्वारा मृत्युदंड से दंडनीय है। दोष सिद्धि कराना है या वह यह जानता है कि इससे उसका दोष सिद्धि होना संभाव्य है। वह आजीवन कारावास से और जुर्माने से दंडनीय होगा और यदि अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के किसी निर्दोष सदस्य को ऐसे मिथ्या या गड़े हुए साक्ष्य के फलस्वरुप दोष सिद्धि किया जाता है और फांसी दी जाती है तो वह व्यक्ति, जो ऐसा मिथ्या साक्ष्य देता या गढ़ता है, मृत्युदंड से दंडनीय होगा,
(ii):मिथ्या साक्ष्य देगा या गढ़ेगा जिससे उसका आशय अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के किसी सदस्य को किसी ऐसे अपराध के लिए जो मृत्युदंड से दंडनीय नहीं है। किन्तु सात वर्ष या उससे अधिक की अवधि के कारावास से दंडनीय है, दोष सिद्धि कराना है या वह यह जानता है कि उससे दोष सिद्धि होना संभाव्य है, वह कारावास से जिसकी अवधि छह माह से कम नहीं होगी किन्तु जो सात वर्ष या उससे अधिक की हो सकेगी और जुर्माने से, दंडनीय होगा,
(iii):अग्नि या किसी विस्फोटक पदार्थ द्वारा रिष्ट करेगा जस्ट करेगा जिससे उसका आशय अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के किसी सदस्य को किसी संपत्ति को नुकसान पहुंचाना है या वह यह जानता है कि उससे ऐसा होना संभाव्य है वह कारावास से, जिसकी अवधि 6 माह से कम कि नहीं होगी किंतु जो 7 वर्ष तक की हो सकेगी और जुर्माने से डंडे नहीं होगा,
(iv):अग्नि या किसी विस्फोटक पदार्थ द्वारा रिष्ट करेगा जस्ट करेगा जिससे उसका आशय किसी ऐसे भवन को जो अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के किसी सदस्य द्वारा साधारण का पूजा के स्थान के रूप में या मानव आवास के स्थान के रूप में या संपत्ति की अभिरक्षा के लिए किसी स्थान के रूप में उपयोग किया जाता है, नष्ट करता है या वह यह जानता है कि उससे ऐसा होना संभाव्य है, वह आजीवन कारावास से और जुर्माने से दण्डनीय होगा।
(v): भारतीय दंड संहिता (1860 का 45) के अधीन 10 वर्ष या उससे अधिक की अवधि के कारावास से दंडनीय कोई अपराध किसी व्यक्ति या संपत्ति के विरुद्ध इस आधार पर करेगा कि ऐसा व्यक्ति अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति का सदस्य है या ऐसी संपत्ति ऐसे सदस्य की है, वह आजीवन कारावास से, और जुर्माने से, दंडित होगा,
(v क): अनुसूची में विनिर्दिष्ट कोई अपराध किसी व्यक्ति या संपत्ति के विरूद्ध, यह जानते हुए करेगा कि ऐसा व्यक्ति अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति का सदस्य है या वह संपत्ति ऐसे सदस्य की है, वह ऐसे अपराधों के लिए भारतीय दंड संहिता के अधीन यथा विनिर्दिष्ट दंड से दंडनीय होगा और जुर्माने से भी दंडनीय होगा है,
(vi): यह जानते हुए या यह विश्वास करने का कारण रखते हुए कि इस अध्याय के अधीन कोई अपराध किया गया है, वह अपराध किये जाने के किसी साक्ष्य को, अपराधी को विधिक दंड से बचाने के आशय से गायब करेगा या उस आशय से अपराध के बारे में कोई जानकारी देगा जो वह जानता है या विश्वास करता है कि वह मिथ्या है, वह उस अपराध के लिए उपबंधित दंड से दंडनीय होगा।
(vii): लोक सेवक होते हुए इस धारा के अधीन कोई अपराध करेगा, वह कारावास से, जिसकी अवधि 1 वर्ष से कम की नहीं होगी किंतु जो उस अपराध के लिए उपबंधित दंड तक हो सकेगी, दंडनीय होगा।
धारा 4: कर्तव्यों की उपेक्षा के लिए दंड:
(i) कोई भी लोकसेवक जो अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति का सदस्य नहीं है इस अधिनियम के अधीन उसके द्वारा पालन किए जाने के लिए आपेक्षित अपने कर्तव्यों की जानबूझकर उपेक्षा करेगा, वह कारावास से, जिसकी अवधि 6 माह से कम कि नहीं होगी किंतु जो 1 वर्ष तक की हो सकेगी, दंडनीय हो होगा।
(ii) उप धारा 1 में निर्दिष्ट लोक सेवक के कर्तव्यों में निम्नलिखित सम्मिलित होगा:-
(क) पुलिस थाने के प्रभारी अधिकारी द्वारा सूचनाकर्ता के हस्ताक्षर लेने से पहले मौखिक रूप से दी गई सूचना को सूचनाकर्ता को पढ़कर सुनाना और उसको लेखबद्ध करना।
(ख) इस अधिनियम और अन्य सुसंगत उपबंधो के अधीन शिकायत या प्रथम सूचना रिपोर्ट को रजिस्टर करना और अधिनियम की उपयुक्त धाराओं के अधीन उसको रजिस्टर करना।
(ग) इस प्रकार अभिलिखित की गई सूचना की एक प्रति सूचनाकर्ता को तुरंत प्रदान करना।
(घ) पीड़ितों और साक्षियों के कथन को अभिलिखित करना।
(ङं) अन्वेषण करना और विशेष न्यायालय या अनन्य विशेष न्यायालय में 60 दिन की अवधि के भीतर आरोपपत्र फाइल करना तथा विलंब, यदि कोई हो, लिखित में स्पष्ट करना।
(च) किसी दस्तावेज या इलेक्ट्रॉनिक अभिलेख को सही रूप से तैयार करना, विरचित करना तथा उसका अनुवाद करना।
(छ) इस अधिनियम या उसके अधीन बनाए गए निमयों में विनिर्दिष्ट किसी अन्य कर्तव्य का पालन करना।
परंतु लोक सेवक के विरूद्ध इस संबंध में आरोप, प्रशासनिक जांच की सिफारिश पर अभिलिखित किए जाएंगे।
(3) लोक सेवक द्वारा उपधारा (2) में निर्दिष्ट कर्तव्य की अवहेलना के संबंध में संज्ञान विशेष न्यायालय या अनन्य विशेष न्यायालय द्वारा दिया जाएगा और लोकसेवक के विरुद्ध दांडिक कार्यवाइयो के लिए निर्देश दिया जाएगा।
धारा 5: पश्चात वर्ती और दोषसिद्धि के लिए वर्धित दंड:-
कोई व्यक्ति जो इस अध्याय के अपनी किसी अपराध के लिए पहले ही दोषसिद्धि हो चुका है दूसरे अपराधी या उसके पश्चातवर्ती किसी अपराध के लिए दोषसिद्ध किया जाता है। वह कारावास से जिसकी अवधि 1 वर्ष के कम कि नहीं होगी किंतु जो उस अपराध के लिए उपबंधित दंड तक हो सकेगी, दंडनीय होगा।
धारा 6:भारतीय दंड संहिता के कतिपय उपबंध हो का लागू होना:
इस अधिनियम के अन्य उपबंधों के अधीन रहते हुए भारतीय दंड संहिता (1860 का 45) की धारा 34, अध्याय 3, अध्याय 4, अध्याय 5, अध्याय 5(क), धारा 149 और अध्याय 23 के उपबंध जहां तक हो सके, इस अधिनियम के लिए उसी प्रकार लागू होंगे जिस प्रकार वे भारतीय दंड संहिता के प्रयोजनों के लिए लागू होते हैं।
धारा 7:कतिपय व्यक्तियों की संपत्ति का समपहरण:-
(1) जहां कोई व्यक्ति इस अध्याय के अधीन दंडनीय किसी अपराध के लिए दोषसिद्धि किया गया है वहां विशेष न्यायालय, कोई दंड देने के अतिरिक्त, लिखित रूप में आदेश द्वारा यह घोषित कर सकेगा कि उस व्यक्ति की कोई संपत्ति, स्थावर या जंगम या दोनों जिनका उस अपराध को करने में प्रयोग किया गया है , सरकार को समपहत हो जाएगी
(2) जहां कोई व्यक्ति इस अध्याय के अधीन किसी अपराध का अभियुक्त हैं, वहां उसका विचारण करने वाला विशेष न्यायालय ऐसा आदेश करने के लिए स्वतंत्र होगा कि उसकी सभी या कोई संपत्ति, स्थावर या जंगम या दोनों, ऐसे विचारण की अवधि के दौरान, पूर्व की जाएगी और जहां ऐसे विचारण का परिणाम दोषसिद्धि है वहा इस प्रकार कुर्क की गई संपत्ति उस सीमा तक समपहरण के दायित्वाधीन होगी जहां तक वह इस अध्याय के अधीन अधिरोपित किसी जुर्माने की वसूली के प्रयोजन के लिए अपेक्षित है।
धारा 8:अपराधों के बारे में उपधारणा:-
इस अध्याय के अधीन किसी अपराध के लिए अभियोजन में यदि यह साबित हो जाता है कि-
(क) अभियुक्त ने इस अध्याय के अधीन अपराध करने के अभियुक्त व्यक्ति की या युक्तियुक्त रूप से संदेहास्पद व्यक्ति की, कोई वित्तीय सहायता की है तो विशेष न्यायालय, जब तक की तत्प्रतिकूल साबित ना किया जाए, यह उपधारणा करेगा कि ऐसे व्यक्ति ने उस अपराध का दुष्प्रेरण किया है।
(ख) व्यक्तियों के समूह ने इस अध्याय के अधीन अपराध किया , और यदि यह साबित हो जाता है कि किया गया अपराध भूमि या किसी अन्य विषय के बारे में किसी विधमान विवाद का फल है तो यह उपधारणा की जाएगी कि यह अपराध सामान्य आशय या सामान्य उद्देश्य को अग्रसर करने के लिए किया गयाथा।
(ग) अभियुक्त पीड़ित या उसके कुटुंब का व्यक्तिगत ज्ञान रखता था, न्यायालय या उद्धारणा करेगा कि जब तक अन्यथा साबित न हो, अभियुक्त को पीड़ित की जाति या जनजाति पहचान का ज्ञान था।
धारा 9:शक्तियों का प्रदान किया जाना:
(1) संहिता में या इस अधिनियम के किसी अन्य उपबंध में किसी बात के होते हुए भी, राज्य सरकार ऐसा करना आवश्यक या समीचीन समझती है, तो वह
(क) इस अधिनियम के अधीन किसी अपराध के निवारण के लिए, उससे निपटने के लिए, या
(ख) इस अधिनियम के अधीन किसी मामले या मामलो के वर्ग या समूह के लिए ,
किसी जिले या उसके किसी भाग में, राज्य सरकार के किसी अधिकारी को राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, ऐसे जले या उसके भाग में संहिता के अधीन पुलिस अधिकारी द्वारा प्रोक्तव्य शक्तियां, यथास्थिति, ऐसे मामले या मामलों के वर्ग या समूह के लिए, और विशिष्टतया किसी विशेष न्यायालय के समक्ष व्यक्तियों की गिरफ्तारी, अन्वेषण पर अभियोजन की शक्तियां प्रदान कर सकेगी।
(2) पुलिस के सभी अधिकारी और सरकार के अन्य सभी अधिकारी इस अधिनियम के या उसके अधीन बनाए गए नियम, स्कीम या आदेश के उपबंधों के निष्पादन में उपधारा (1) में निर्दिष्ट अधिकारी की सहायता करेंगे।
(3) संहिता के उपबंध, जहाँ तक हो सके, उपधारा (1) के अधीन किसी अधिकारी दुवारा शक्तियों के प्रयोग के संबंध में लागू होंगे। और आगे जाने अगले लेख मे
और अधिक जाने (Know more):
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