धारा 13: सिविल न्यायालयों की अधिकारिता की परिसीमा:
(1) यदि सिविल न्यायालय के समक्ष के किसी बाद या कार्यवाही मैं अंतरग्रस्त दावा या किसी डिक्री या आदेश का दिया जाना या किसी डिग्री या आदेश का पूर्णतया या भागत: निष्पादन इस अधिनियम के उपबंधों के किसी प्रकार प्रतिकूल हो तो ऐसा न्यायालय न ऐसा कोई वाद या कार्यवाही ग्रहण करेगा या चालू रखेगा और न ही ऐसी कोई डिक्री या आदेश देगा या ऐसी किसी डिक्री या आदेश का पूर्णतः या भागत: निष्पादन करेगा।
(2) कोई न्यायालय किसी बात के न्यायनिर्णयन में या किसी डिक्री या आदेश के निष्पादन में किसी निर्योग्यता आधिरोपित करने वाले किसी रूढ़ि या प्रथा को मान्यता नहीं देगा।
व्याख्या:
धारा 13- सिविल न्यायालयों की अधिकारिता की परिसीमा:
यदि सिविल न्यायालय के समक्ष किसी बात या कार्यवाही में अंतर्ग्रस्त दावा, डिर्की या आदेश का दिया जाना इस अधिनियम के उपबन्धों के विपरीत हो तो न्यायालय ना तो किसी ऐसे बाद को ग्रहण करेगा न ही चालू रखेगा न ही कोई डिक्री या आदेश देगा।
कोई न्यायालय किसी निर्णय या डिक्री या आदेश के निष्पादन में किसी व्यक्ति पर अस्पृश्यता के आधार पर कोई निरोग्यता लागू करने वाली किसी रूढ़ी या प्रथा को मान्यता नहीं देगा।
धारा 14: कंपनियों द्वारा अपराध:
(1) यदि इस अधिनियम के अधीन अपराध करने वाला व्यक्ति कंपनी हो तो, तो हर ऐसा व्यक्ति जो अपराध किए जाने के समय उस कंपनी के कारोबार के संचालन के लिए, उस कंपनी का भारसाधक और उस कंपनी के प्रति उत्तरदाई था, उस पर अपराध का दोषी समझा जाएगा और तदनुसार अपने विरूदध कार्यवाही किए जाने और दण्डित किए जाने का भागी होगा:
परंतु इस धारा के मैं अंतर्विष्ट किसी भी बात से कोई ऐसा व्यक्ति दंड का भागी न होगा, यदि वह है यह साबित कर दें कि अपराध उसकी जानकारी के बिना किया गया था या ऐसे अपराध काकिया जाना निवारित करने के लिए उसने सब सम्यक तत्परता बरती थी।
(2) उपधारा 1में अंतर्विष्ट किसी बात के होते हुए भी जहां इससे अधिनियम के अधीन कोई अपराध कंपनी के किसी निदेशक, प्रबंधक, सचिव या अन्य अधिकारी की संपत्ति से किया गया हो वहां ऐसा निदेशक, प्रबंधक, सचिव या अन्य अधिकारी भी उस अपराध का दोषी समझा जाएगा और तदनुसार अपने विरूदध कार्रवाई किए जाने और दंडित किए जाने का भागी होगा।
स्पष्टीकरण: - इस धारा के प्रयोजनों के लिए -
(क)कंपनी से कोई निगमित निकाय अभिप्रेत है और उसके अंतर्गत फर्म या व्यष्टियों का अन्य संगम भी है, तथा
(ख) फर्म के संबंध में "निदेशक" से फर्म का भागीदार भी अभिप्रेत है।
व्याख्या:
धारा 14 कंपनियों द्वारा अपराध:
"कंपनी" शब्द की परिभाषा-
कोई नियमित एसोसिएशन (Association ) निकाह
कोई फार्म
कोई संगम एसोसिएशन (Association )
"निदेशक" इसके अंतर्गत फर्म का भागीदार भी आएगा।
धारा 14 (1)के अनुसार -
यदि इस अधिनियम के अधीन अपराध करने वाला व्यक्ति कोई कंपनी हो तो प्रत्येक कैसा व्यक्ति, जो अपराध किए जाते समय उस कंपनी के कारोबार के संचालन के लिए उत्तरदाई था। अपराध का दोषी समझा जाएगा और दंड का भागी होगा , लेकिन कोई ऐसा व्यक्ति दंड का भागी नहीं होगा, जो यह साबित कर दें कि अपराध उसकी जानकारी के बिना किया गया था यदि उसे ऐसा ऐसे अपराध की जानकारी थी तो उसने उस अपराध के निवारण के लिए तत्परता बरती थी।
धारा 14 (2) के अनुसार -
कंपनी के संबंध में अपराध के लिए दायित्वधीन होंगे-
1. कंपनी के निदेशक
2. फर्म
3. प्रबंधक
4. सचिव
5. कोई अन्य अधिकारी जिसकी संपत्ति या जानकारी से ऐसा अपराध किया गया है।
धारा 14 (क): सदभावपूर्वक की गई कार्रवायी के लिए संरक्षण:
(1) एक कोई भी वादी, अभियोजन या अन्य विधिक कार्यवाही किसी भी ऐसी बात के बारे में, जो इस अधिनियम के अधीन सदभावपूर्वक की गई हो या की जाने के लिए आशी अर्थ आशयित हो, केंद्रीय सरकार या राज्य सरकार के विरूदध न होगी।
(2) कोई भी वाद या अन्य विधिक कार्यवाही किसी भी ऐसे नुकसान के बारे में, जो इस अधिनियम के अधीन सदभावपूर्वक की गई या की जाने के लिए आशयित किसी बात के कारण हुआ हो,केंद्रीय सरकार या राज्य सरकार के विरोध ना हो।
व्याख्या:
धारा 14 (क): सदभावनापूर्वक की गई कार्यवाही के लिए संरक्षण:-
कोई भी वाद या अभियोजन या अन्य विधिक कार्रवाई सदभावनापूर्वक की गई बात के लिए, केंद्र सरकार या राज्य सरकार के विरुद्ध अभियोजन का कारण नहीं बनेगा।
सदभावनापूर्वक:-
धारा- 52 भारतीय दंड संहिता के अनुसार कोई बात सदभावनापूर्वक की गई कहीं जाती है यदि सम्यक सतर्कता और ध्यान के साथ की गई हो।
धारा 15: अपराध संज्ञेय या संक्षेपतः विचारणीय होंगे:
(1) दंड प्रक्रिया संहिता 1973 (1974 का 2 ) मैं किसी बात के होते हुए भी इस अधिनियम के अधीन दंडनीय अपराध संज्ञेय होगा और ऐसे हर अपराध पर, सिवाय उसके जो कम से कम 3 माह से अधिक अवधि के कारावास से दंडनीय हैं, प्रथम श्रेणी न्यायिक मजिस्ट्रेट या महानगर क्षेत्र में महानगर मजिस्ट्रेट द्वारा उक्त संहिता में विनिर्दिष्ट प्रक्रिया के अनुसार संक्षेपतः विचारण किया जा सकेगा।
(2) दंड प्रक्रिया संहिता 1973 (1974 का 2 ) मैं किसी बात के होते हुए भी जब किसी लोक सेवक के बारे में यह अभिकथित है कि उसने इस अधिनियम के अधीन दंडनीय किसी अपराध के दुष्प्रेरण का अपराध अपने पदीय कर्त्तव्यों के निर्वहन में कार्य करते हुए या कार्य करना तत्परयित करते हुए, किया है कोई न्यायालय ऐसे दुष्प्रेरण के अपराध का संज्ञान-
(क) संघ के कार्यों के संबंध में नियोजित व्यक्ति की दशा में केंद्रीय सरकार की, और
(ख) किसी राज्य के कार्यो के संबंध में नियोजित व्यक्ति की दिशा में, उस राज्य सरकारी की पूर्व मंजूरी के बिना नहीं करेंगा।
व्याख्या:
धारा 15: अपराध संज्ञेय या संक्षेपतः विचारणीय होंगे: -
दंड प्रक्रिया संहिता 1973 (1974 का 2 ) मैं किसी बात पर होते हुए भी इस अधिनियम के अधीन दंडनीय प्रत्येक अपराध संज्ञेय अपराध होगा।
अपराध निवारण कौन कर सकेगा: -
a. प्रथम श्रेणी न्यायिक मजिस्ट्रेट
b. अगर महानगर क्षेत्र हो तो महानगर मजिस्ट्रेट
c. यदि अपराध करने वाला व्यक्ति लोकसेवक हो तो:-
(1) यदि केंद्र सरकार का कर्मचारी है तो केंद्र सरकार की परमिशन के बिना,
(2) यदि राज्य सरकार का कर्मचारी है तो राज्य सरकार की परमिशन के बिना, ऐसे व्यक्ति को अभियोजक नहीं किया जाएगा।
"संज्ञेय अपराध":
संज्ञेय अपराध वे अपराध होते हैं जिनमें कोई पुलिस अधिकारी बिना वारंट गिरफ्तारी कर सकता है।
धारा 15(क): अस्पृश्यता का अंत करने से प्रोदभूत अधिकारों का संबंधित व्यक्तियों द्वारा फायदा उठाना सुनिश्चित करने का राज्य सरकार का कर्तव्य: -
(1) ऐसे नियमों के अधीन रहते हुए, जो केंद्रीय सरकार इस निमित्य बनाएं, राज्य सरकार ऐसे उपाय करेगी, जो यह सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक हो कि "अस्पृश्यता" का अंतर करने से उदभूत होने वाले अधिकार "अस्पृश्यता" से उदभूत किसी निर्योग्यता से पीड़ित व्यक्तियों को उपलब्ध किए जाते हैं और वे उनका फायदा उठाते हैं।
(2) विशिष्टत: और उप धारा (1) के उपबँधो की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, ऐसे उपायों के तहत निम्नलिखित है अर्थात-
(i) पर्याप्त सुविधाओं की व्यवस्था जिसके अंतर्गत अस्पृश्यता से उदभूत किसी निर्योग्यता से पीड़ित व्यक्तियों को विधिक सहायता देना है जिससे कि वे ऐसे अधिकारों का फायदा उठा सकें।
(ii) इस अधिनियम के उपबँधो के उल्लंघन के लिए अभियोजन प्रारंभ करने या ऐसे अभियोजनों का पर्यवेक्षण करने के लिए अधिकारियों की नियुक्ति।
(iii) इस अधिनियम के अधीन अपराधों के विचारण के लिए विशेष न्यायालयों की स्थापना।
(iv) ऐसे समुचित स्तरों पर समितियों की स्थापना जो राज्य सरकार ऐसे उपायों के निरूपण या उन्हें कार्यान्वित करने में राज्य सरकार की सहायता करने के लिए ठीक समझें।
(v) इस अधिनियम के उपबंधों के बेहतर कार्यान्वयन के लिए उपाय सुझाने की दृष्टि से इस अधिनियम के उपबंधों के कार्यकरण के सर्वेक्षण की समय-समय पर व्यवस्था करना।
(vi) उन क्षेत्रों का अभिनिर्धारण जहाँ व्यक्ति अस्पृश्यता से उदभूत किसी निर्योग्यता से पीड़ित है, और ऐसे उपायों को अपनाना जिनसे ऐसे क्षेत्रों में ऐसी निर्योग्यता का दूर किया जाना सुनिश्चित हो सके।
(3) केंद्रीय सरकार राज्य सरकारों द्वारा उपधारा (1) के अधीन किए गए उपायों में समन्वय स्थापित करने के लिए ऐसे कदम उठाएगी जो आवश्यक हो।
(4) केंद्रीय सरकार हर के वर्ष संसद के प्रत्येक के सदन के पटल पर ऐसे उपायों की रिपोर्ट प्रस्तुत करेगी जो उसने और राज्य सरकारों ने इस धारा के उपबंधों के अनुसरण में किए हैं।
व्याख्या:
धारा 15(क): अस्पृश्यता का अंत करने से प्रोदभूत अधिकारों का संबंधित व्यक्तियों द्वारा फायदा उठाना सुनिश्चित करने का राज्य सरकार का कर्तव्य: -
ऐसे निमियो के अधीन रहते हुए जो केंद्र सरकार इस अधिनियम के संबंध में बनाएं राज्य सरकार ऐसे उपाय करेगी, जो पीड़ित व्यक्तियों को उपलब्ध कराए जाएंगे।
इसके तहत निम्न उपाय किए जा सकते हैं :-
(i) एक पर्याप्त सुविधाओं की व्यवस्था जिसके अंतर्गत अस्पृश्यता से उत्पन्न किसी निर्योग्यता से पीड़ित व्यक्तियों को विधिक सहायता देना।
(ii) अभियोजन का प्रारंभ करने के लिए या अभियोजन का परीक्षण करने के लिए अधिकारियों की नियुक्ति करें।
(iii)अपराधों के विचारण के लिए विशेष न्यायालय की स्थापना करना।
(iv) समितियों का गठन करना, जो अधिनियम के उपायों का कार्यान्वयन करने में राज्य सरकार की सहायता करेंगी ।
(v) अधिनियम के उपबंधों के बेहतर कार्यान्वयन के लिए उपाय सुझाने के लिए सर्वेक्षण की व्यवस्था करना।
(vi) उन क्षेत्रों का अभिनिर्धारण करना, जहां व्यक्ति अस्पृश्यता से उत्पन्न किसी निर्योग्यता से पीड़ित है व ऐसे उपायों को अपनाना, जिनमें ऐसे निर्योग्यता को दूर किया जा सके।
धारा 15( क). (4 ) प्रावधान करती है कि केंद्र सरकार हर वर्ष संसद के प्रत्येक सदन के पटल पर ऐसे उपायों की रिपोर्ट प्रस्तुत करेगी, जो उसने व राज्य सरकारों ने इस धारा के उपबंधों के अनुसरण में किए हैं।
धारा 16: अधिनियम अन्य विधियों का अध्यारोपण करेगा: -
इस अधिनियम में अभिव्यक्त रूप से अन्यथा उपबंधित के सेवाय, इस अधिनियम के उपबंध, किसी ततसमय समय प्रवृत विधि में उनसे असंगत किसी बात के होते हुए भी या किसी रूढ़ि या प्रथा अथवा किसी ऐसी विधि अथवा किसी न्यायालय या अन्य प्राधिकारी की किसी डिर्की श्री या आदेश के आधार पर प्रभावी किसी लिखित के होते हुए भी प्रभावी होंगे।
व्याख्या:
धारा 16: अधिनियम अन्य विधियों का अध्यारोपण करेगा: -
अध्यारोही प्रभावी होने का अर्थ किसी विधि, अधिनियम, रूढ़ि, प्रथा, न्यायालय के आदेश, डिर्की या किसी लिखित में किसी बात के होते हुए भी इस अधिनियम के प्रावधान लागू होंगे।
धारा 16 (क): अपराधी परिवीक्षा अधिनियम, 1958 का 14 वर्ष से अधिक आयु के व्यक्तियों को लागू ना होना: -
अपराधी परिवीक्षा अधिनियम 1958 (1958 का 20) के उपबंध किसी ऐसे व्यक्ति को लागू नहीं होंगे, जो 14 वर्ष से अधिक का है और इस अधिनियम के अधीन किसी अपराध के किए जाने का दोषी पाया जाता है।
व्यख्या :
धारा 16 (क): अपराधी परिवीक्षा अधिनियम लागू होने के संबंध में:-
इस धारा के तहत अपराधी परिवीक्षा अधिनियम 1958 14 वर्ष से अधिक आयु के व्यक्ति पर लागू नहीं होगी
धारा 16 (ख): नियम बनाने की शक्ति-
(1) केंद्रीय सरकार, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, इस अधिनियम के उपबँधो का पालन करने के लिए, नियम बना सकेगी।
(2) इस अधिनियम के अधीन केंद्रीय सरकार द्वारा बनाया गया प्रत्येक नियम, बनाए जाने के पश्चात यथाशीघ्र, संसद के प्रत्येक सदन के समक्ष, जब वह सत्र में हो, वह कुल 30 दिन की अवधि के लिए रखा जाएगा। यह अवधि एक सत्र में अथवा दो या अधिक आनुक्रमिक सत्रों में पूरी हो सकेगी। यदि उस सत्र के, या पूर्वोक्त आनुक्रमिक सत्रों के ठीक बाद के सत्र के अवसान के पूर्व दोनों सदन उस नियम में कोई परिवर्तन करने के लिए सहमत हो जाएं, तो तत्पश्चात वह निष्प्रभाव हो जाएगा किंतु नियम के ऐसे परिवर्तन या निष्प्रभाव होने से उसके अधीन पहले की गई किसी बात की विधिमान्यता पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा।
व्यख्या :
धारा 16 (ख): नियम बनाने की शक्ति:-
केंद्र सरकार राजपत्र में अधिसूचना द्वारा इस अधिनियम के उपबंधों का पालन करने के लिए नियम बना सकती हैं। सरकार द्वारा बनाया गया प्रत्येक नियम बनाए जाने के पश्चात यथाशीघ्र संसद के प्रत्येक सदन के समक्ष 30 दिन की अवधि के लिए रखा जाएगा।
धारा 17. निरसन:
अनुसूची में विनिर्दिष्ट अधिनियमितिया, जहाँ तक कि वे या उनमें अंतर्विष्ट उपबंधों में से से कोई इस अधिनियम या उस में अंतर्विष्ट उपबंधों में से किसी के समान है या उसके विरुद्ध हैं, एतद् द्वारा निरसित की जाती है।
सिविल अधिकार संरक्षण एक्ट -1955 संपूर्ण हुआ (Civil Rights Protection Act -1955 Completed)
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